आज कल तुम सोचते क्या हो?
आज कल
तुम सोचते क्या हो मित्र, सखा, भाई, दिलबर ......या जो तुम भी सोच लेते हो या फिर समझना चाहो. पर आखिर तुम क्या सोचते रहते हो जो इतना गुमसुम हो चुके कि तुमसे बोला भी नहीं जाता है. इतना तो समझ ही लो कि हमारे लिए तुम हमेशा से वही थे और वही रहोगे. फिर जितना भी तुम दूर चले जाओ या पास रह जाओ.
तुम ऐसा क्या सोचते हो जो मुझे नहीं बता सकते ? आखिर मैं भी तो कुछ हूँ तुम्हारे लिए? क्या हमारा-तुम्हारा सम्बन्ध इतना फ़ीका पड़ चुका है कि अब तुम समझ भी नहीं सकते कि मुझे उसको बताना भी चाहिए या नहीं. ऐसी सोच किस काम कि जिसे तुम बता भी न सको और अपने तक ही सिमित कर लो. इतना तो साफ़ है कि तुम्हे सोचने की बहुत लत पड़ चुकी है और शायद यह अर्सो पहले शुरू की गई क्रिया रही होगी जो पुनर्स्थापित हो गई.
अब तुम गलत सोच रहे हो या सही यह बात तो हम भी सोच ही सकते है ! शायद तुम भी अपने सोचने की शक्ति से मुझे भी सोचने पर मजबूर करना चाहते हो. अरे! तुम तो साफ़ तौर पर कह देते क्योंकि हम तो ख़ुशी-ख़ुशी तुम्हारे ही सोच में खो जाएं और भले ही नींद भी मुझे तुम्हारे बारे में सोचने पर आये लेकिन कुछ तो मुझे भी समझ में आये. चलो हम दोनों सोचते है और फिर इस बात का निर्धारण करते है कि किसकी सोच पहले हो सकती है और किसकी नहीं.
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सोचना अच्छा है लेकिन उससे चिंतित होना मुनासिब नहीं है इसलिए तुम्हें सोचने की ज़रुरत हो लेकिन चिंतिति होने की नौबत कभी भी नहीं होनी चाहिए. सोच सृजनता का वाहक और उसे लेकर तुम्हें ऐसे विचार इस समाज के लिए बनाकर रखने है जिससे सबका भला हो सके और तुम सबके लिए काम आ सको.
सोचना गलत या सही हमारे नज़रिये के हिसाब से होता है किन्तु आप जहाँ भी हो जीवन के हर मोड़ पर आपको अपनीओ सोच के अनुरूप ही चलना होता और चाहिए भी. यदि आपने सोच से समझौता कर लिया तो आप हालात के बंधी हो जाते किन्तु आपने सोच से संधि कर ली और सदैव स्वंतंत्र रहते है.