Indian History vs Bollywood
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23-May-2019, Updated on 5/23/2019 11:42:05 PM

Indian History vs Bollywood

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भारतीय सिनेमा Vs भारतीय इतिहास  

(replicate)

आज हमने "Amazon Prime" पर जब बाजीराव मस्तानी फिल्म देखी तो इसका अंत बिल्कुल हजम नहीं हुआ. भंसाली की मजबूरियां थीं कि फिल्म को हिंदू-मुस्लिम दोनों तरह के दर्शकों की कसौटी पर खरा उतारते हुए उसका रोमांटिक चरित्र ही बनाए रखना था।आगे की पीढ़ियां बाजीराव को एक रोमांटिक हीरो की तरह जानेंगी, जिसने कट्टर ब्राह्मणों से टक्कर लेकर भी अपनी मुस्लिम बीवी को बनाए रखा। बेटे का संस्कार ना करने पर उसका नाम बदलकर गुस्से में कृष्णा से शमशेर बहादुर कर दिया। जोधा अकबर की तरह बाजीराव मस्तानी को भी जाना जाएगा, पर जब उनके बारे में शोध किया तो लगा ऐसे अनसंग हीरो की गाथा लोगों को अवश्य बतानी चाहिए. यहाँ तक कि महाराष्ट्र में भी बच्चों को शिवाजी का इतिहास पढ़ाया जाता है पर बाजीराव प्रथम के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया जाता.

Indian History vs Bollywood

(https://en.wikipedia.org/wiki/Mastani)

- बाजीराव 6 फुट लम्बे थे , साथ ही उनके हाथ भी लम्बे थे. बलिष् निरोग शरीर , तेजस्वी कांती, तांबई रंग की त्वचा, न्यायप्रिय. उन्हें सफ़ेद या हल्के रंग के वस्त्र पसंद थे. जहां तक हो सके स्वयं के काम स्वयं करते थे. उनके 4 घोड़े थे- निला, गंगा, सारंगा आणि अबलख. उनकी देखभाल स्वयं करते थे. घोड़े को तेज़ चलाते चने खाते वे सबसे तेज़ गति से यात्रा करते थे. झू बोलना , अन्याय , ऐशोआराम से उन्हें सख्त नफरत थी. पूरी सेना को वे सख्त अनुशासन में रखते थे.सेना को बहुत अच्छा प्रेरित और प्रोत्साहित करने वाला भाषण देते थे.

- अमेरिकी सेना में उनकी पालखेड की लड़ाई का एक मॉडल ही बना कर रखा है जिस पर सैनिकों को युद्ध तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाता है.

- जब औरंगजेब के दरबार में अपमानित हुए वीर शिवाजी आगरा में उसकी कैद से बचकर भागे थे तो उन्होंने एक ही सपना देखा था, पूरे मुगल साम्राज्य को कदमों पर झुकाने का। अटक से कटक तक केसरिया लहराने का और हिंदू स्वराज लाने का। इस सपने को पूरा किया खासकर पेशवा बाजीराव प्रथम ने।

- उन्नीस-बीस साल के उस युवा ने तीन दिन तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा। मुगल बादशाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हुई। यहां तक कि 12वां मुगल बादशाह और औरंगजेब का नाती दिल्ली से बाहर भागने ही वाला था कि बाजीराव मुगलों को अपनी ताकत दिखाकर वापस लौट गया।

- वर्ल्ड वॉर सेकंड में ब्रिटिश आर्मी के कमांडर रहे मशहूर सेनापति जनरल मांटगोमरी ने भी अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ वॉरफेयर’ में बाजीराव की बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली की जमकर तारीफ की है और लिखा है कि बाजीराव कभी हारा नहीं। आज वो किताब ब्रिटेन में डिफेंस स्टडीज के कोर्स में पढ़ाई जाती है। बाद में यही आक्रमण शैली सेकंड वर्ल्ड वॉर में अपनाई गई, जिसे ‘ब्लिट्जक्रिग’ बोला गया। निजाम पर आक्रमण के एक सीन में भंसाली ने उसे दिखाने की कोशिश भी की है।

- बाजीराव का वॉर रिकॉर्ड छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप से भी अच्छा था. उन्होंने 40 के ऊपर युद्ध लडे और एक में भी हारे नहीं.

- नर्मदा पार सेना ले जाने वाला और 400 वर्ष की यवनी सत्ता को दिल्ली में जा कर ललकारने वाला यह पहला मरा ा था.

- बाजीराव ने अगर गुजरात, मालवा, बुंदेलखंड ना जीता होता और नर्मदा व विंध्य पर्वत के सभी मार्ग अपने कब्जे में ना लिए होते तो फिर एक बार अल्लाउद्दीन खिलजी, अकबर या औरंगजेब जैसा कोई शासक विशाल सेना ले आक्रमण करता.

- उसे योग्यता की इस कदर पहचान थी कि उसके सिपहसालार बाद में मरा ा इतिहास की बड़ी ताकत के तौर पर उभरे। होल्कर, सिंधिया, पवार, शिंदे, गायकवाड़ जैसी ताकतें जो बाद में अस्तित्व में आईं, वो सब पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट की देन थीं। ग्वालियर, इंदौर,धार, देवास , पूना और बड़ौदा जैसी ताकतवर रियासतें बाजीराव के चलते ही अस्तित्व में आईं।

- बाजीराव का अंतिम समय मालवा में ही नर्मदा किनारे रावेरखेडी में लू लग कर विषम ज्वर आने से हुआ. ना की मस्तानी की याद में हुआ. उनके साथ उनके घोड़े और हाथी ने भी प्राण त्याग दिए. आज भी उनकी समाधि वहां है.

- बाजीराव पहला ऐसा योद्धा था, जिसके समय में 70 से 80 फीसदी भारत पर उसका सिक्का चलता था। वो अकेला ऐसा राजा था जिसने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था। पूना शहर को कस्बे से महानगर में तब्दील करने वाला बाजीराव बल्लाल भट्ट था, सतारा से लाकर कई अमीर परिवार वहां बसाए गए।

- निजाम, बंगश से लेकर मुगलों और पुर्तगालियों तक को कई कई बार शिकस्त देने वाली अकेली ताकत थी बाजीराव की।

- शिवाजी के नाती शाहूजी महाराज को गद्दी पर बै ाकर बिना उसे चुनौती दिए, पूरे देश में उनकी ताकत का लोहा मनवाया था बाजीराव ने।

- पहली बार हिंदू पद पादशाही के सिद्धांत को व्यावहारिक रूप से बाजीराव प्रथम ने लागू किया था। हर हिंदू राजा के लिए आधी रात मदद करने को तैयार था वो, पूरे देश का बादशाह एक हिंदू हो, उसके जीवन का लक्ष्य ये था, लेकिन जनता किसी भी धर्म को मानती हो उसके साथ वो न्याय करता था।   

- उसकी अपनी फौज में कई अहम पदों पर मुस्लिम सिपहसालार थे, लेकिन वो युद्ध से पहले "हर हर महादेव" का नारा भी लगाना नहीं भूलता था।

- बुंदेलखंड की रियासत बाजीराव के दम पर जिंदा थी, छत्रसाल की मौत के बाद उसका तिहाई हिस्सा भी बाजीराव को मिला।

- कभी वाराणसी जाएंगे तो उसके नाम का एक घाट पाएंगे, जो खुद बाजीराव ने 1735 में बनवाया था, - दिल्ली के बिरला मंदिर में जाएंगे तो उसकी एक मूर्ति पाएंगे।

- कच्छ में जाएंगे तो उसका बनाया आइना महल पाएंगे, पूना में मस्तानी महल और शनिवार बाड़ा पाएंगे। अकबर की तरह उसको वक्त नहीं मिला, कम उम्र में चल बसा, नहीं तो भव्य इमारतें बनाने का उसको भी शौक था।

- दिल्ली पर आक्रमण उसका सबसे बड़ा साहसिक कदम था, वो अक्सर शिवाजी के नाती छत्रपति शाहु से कहता था कि मुगल साम्राज्य की जड़ों यानी दिल्ली पर आक्रमण किए बिना मरा ों की ताकत को बुलंदी पर पहुंचाना मुमकिन नहीं, और दिल्ली को तो मैं कभी भी कदमों पर झुका दूंगा। छत्रपति शाहू सात साल की उम्र से 25 साल की उम्र तक मुगलों की कैद में रहे थे, वो मुगलों की ताकत को बखूबी जानते थे, लेकिन बाजीराव का जोश उस पर भारी पड़ जाता था।

- धीरे धीरे उसने महाराष्ट्र को ही नहीं पूरे पश्चिम भारत को मुगल आधिपत्य से मुक्त कर दिया।

- फिर उसने दक्कन का रुख किया, निजाम जो मुगल बादशाह से बगावत कर चुका था, एक बड़ी ताकत था। कम सेना होने के बावजूद बाजीराव ने उसे कई युद्धों में हराया और कई शर्तें थोपने के साथ उसे अपने प्रभाव में लिया।

- इधर उसने बुंदेलखंड में मुगल सिपाहसालार मोहम्मद बंगश को हराया।

- 1728 से 1735 के बीच पेशवा ने कई जंगें लड़ीं, पूरा मालवा और गुजरात उसके कब्जे में आ गया। बंगश, निजाम जैसे कई बड़े सिपहसालार पस्त हो चुके थे।

- इधर दिल्ली का दरबार ताकतवर सैयद बंधुओं को िकाने लगा चुका था, निजाम पहले ही विद्रोही हो चुका था।

- औरंगजेब के वंशज और 12 वें मुगल बादशाह मोहम्मद शाह को रंगीला कहा जाता था, जो कवियों जैसी तबियत का था। जंग लड़ने की उसकी आदत में जंग लगा हुआ था। कई मुगल सिपाहसालार विद्रोह कर रहे थे।

- उसने बंगश को हटाकर जय सिंह को भेजा, जिसने बाजीराव से हारने के बाद उसको मालवा से चौथ वसूलने का अधिकार दिलवा दिया।

- मुगल बादशाह ने बाजीराव को डिप्टी गर्वनर भी बनवा दिया। लेकिन बाजीराव का बचपन का सपना मुगल बादशाह को अपनी ताकत का परिचय करवाने का था, वो एक प्रांत का डिप्टी गर्वनर बनके या बंगश और निजाम जैसे सिपहासालारों को हराने से कैसे पूरा होता।

- उसने 12 नवंबर 1736 को पुणे से दिल्ली मार्च शुरू किया। मुगल बादशाह ने आगरा के गर्वनर सादात खां को उससे निपटने का जिम्मा सौंपा। मल्हार राव होल्कर और पिलाजी जाधव की सेना यमुना पार कर के दोआब में आ गई। मरा ों से खौफ में था सादात खां, उसने डेढ़ लाख की सेना जुटा ली। मरा ों के पास तो कभी भी एक मोर्चे पर इतनी सेना नहीं रही थी। लेकिन उनकी रणनीति बहुत दिलचस्प थी। इधर मल्हार राव होल्कर ने रणनीति पर अमल किया और मैदान छोड़ दिया। सादात खां ने डींगें मारते हुआ अपनी जीत का सारा विवरण मुगल बादशाह को पहुंचा दिया और खुद मथुरा की तरफ चला आया।

- बाजीराव ने सादात खां और मुगल दरबार को सबक सिखाने की सोची। उस वक्त देश में कोई भी ऐसी ताकत नहीं थी, जो सीधे दिल्ली पर आक्रमण करने का ख्वाब भी दिल में ला सके।

- सारी मुगल सेना आगरा मथुरा में अटक गई और बाजीराव दिल्ली तक चढ़ आया, आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है, वहां बाजीराव ने डेरा डाल दिया। दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके।

- देश के इतिहास में ये अब तक दो आक्रमण ही सबसे तेज माने गए हैं, एक अकबर का फतेहपुर से गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए नौ दिन के अंदर वापस गुजरात जाकर हमला करना और दूसरा बाजीराव का दिल्ली पर हमला।

- बाजीराव ने तालकटोरा में अपनी सेना का कैंप डाल दिया, केवल पांच सौ घोड़े थे उसके पास। मुगल बादशाह मौहम्मद शाह रंगीला बाजीराव को लाल किले के इतना करीब देखकर घबरा गया। उसने खुद को लाल किले के सुरक्षित इलाके में कैद कर लिया और मीर हसन कोका की अगुआई में आ से दस हजार सैनिकों की टोली बाजीराव से निपटने के लिए भेजी।

- बाजीराव के पांच सौ लड़ाकों ने उस सेना को बुरी तरह शिकस्त दी। ये 28 मार्च 1737 का दिन था, मरा ा ताकत के लिए सबसे बड़ा दिन। कितना आसान था बाजीराव के लिए, लाल किले में घुसकर दिल्ली पर कब्जा कर लेना। लेकिन बाजीराव की जान तो पुणे में बसती थी, महाराष्ट्र में बसती थी।

- वो तीन दिन तक वहीं रुका, एक बार तो मुगल बादशाह ने योजना बना ली कि लाल किले के गुप्त रास्ते से भागकर अवध चला जाए। लेकिन बाजीराव बस मुगलों को अपनी ताकत का अहसास दिलाना चाहता था। वो तीन दिन तक वहीं डेरा डाले रहा, पूरी दिल्ली को एक तरह से मरा ों ने बंधक बना ली थी। उसके बाद बाजीराव वापस लौट गया।

- बुरी तरह बेइज्जत हुआ मुगल बादशाह रंगीला ने निजाम से मदद मांगी, वो पुराना मुगल वफादार था, मुगल हुकूमत की इज्जत को बिखरते नहीं देख पाया। वो दक्कन से निकल पड़ा। इधर से बाजीराव और उधर से निजाम दोनों एमपी के सिरोंजी में मिले।

- कई बार बाजीराव से पिट चुके निजाम ने उसको केवल इतना बताया कि वो मुगल बादशाह से मिलने जा रहा है।

- निजाम दिल्ली आया, कई मुगल सिपहसालारों ने हाथ मिलाया और बाजीराव को बेइज्जती करने का दंड देने का संकल्प लिया और कूच कर दिया।

- लेकिन बाजीराव बल्लाल भट्ट से बड़ा कोई दूरदर्शी योद्धा उस काल खंड में पैदा नहीं हुआ था।बाजीराव खतरा भांप चुका था। अपने भाई चिमना जी अप्पा के साथ दस हजार सैनिकों को दक्कन की सुरक्षा का भार देकर वो अस्सी हजार सैनिकों के साथ फिर दिल्ली की तरफ निकल पड़ा। इस बार मुगलों को निर्णायक युद्ध में हराने का इरादा था, ताकि फिर सिर ना उ ा सकें।

- दिल्ली से निजाम के अगुआई में मुगलों की विशाल सेना और दक्कन से बाजीराव की अगुआई में मरा ा सेना निकल पड़ी। दोनों सेनाएं भोपाल में मिलीं, 24 दिसंबर 1737 का दिन मरा ा सेना ने मुगलों को जबरदस्त तरीके से हराया।

- निजाम अपनी जान बचाने के चक्कर में जल्द संधि करने के लिए तैयार हो जाता था। इस बार 7 जनवरी 1738 को ये संधि दोराहा में हुई।

-मालवा मरा ों को सौंप दिया गया और मुगलों ने पचास लाख रुपये बतौर हर्जाना बाजीराव को सौंपे। - चूंकि निजाम हर बार संधि तोड़ता था, सो बाजीराव ने इस बार निजाम को मजबूर किया कि वो कुरान की कसम खाकर संधि की शर्तें दोहराए।

-अगला अभियान उसका पुर्तगालियों के खिलाफ था। कई युद्दों में उन्हें हराकर उनको अपनी सत्ता मानने पर उसने मजबूर किया।

-अगर पेशवा कम उम्र में ना चल बसता, तो ना अहमद शाह अब्दाली या नादिर शाह हावी हो पाते और ना ही अंग्रेज और पुर्तगालियों जैसी पश्चिमी ताकतें। बाजीराव का केवल चालीस साल की उम्र में इस दुनिया से चले जाना मरा ों के लिए ही नहीं देश की बाकी पीढ़ियों के लिए भी दर्दनाक भविष्य लेकर आया।

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