Tradition of India, हलषष् ी का त्यौहार!
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28-Aug-2021

Tradition of India, हलषष् ी का त्यौहार!

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हलषष् ी का त्यौहार


हलषष् ी का त्यौहार भारत मे मनाया जाने वाला पर्व है।


हलषष् ी का त्यौहार, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हलषष् ी के रूप में मनाया जाता है, ऐसा कहा जाता है कि इस दिन हल की पूजा की जाती है।


कुछ लोग जनक सुता सीता का भी जन्म इसी तिथि को मनाते हैं। हलषष् ी का व्रत मुख्य रूप से पुत्रवती माताएं करती हैं। इस दिन बहुत सी दातुन करने का नियम है, साथ ही हल द्वारा उत्पन्न भोजन और दूध नहीं ग्रहण किया जाता है।


सर्वप्रथम प्रातः स्नान कर आंगन लीपकर, एक जलकुंड में थोड़ा सा गड्ढा खोदकर स्थान बनाया जाता है, फिर बेल पलाश गूलर कुश की टहनियां लगा दी जाती हैं। सात प्रकार का अनाज चढ़ाया जाता है गेहूं, चना, धान, मक्का, ज्वार और बाजरा फिर हल्दी रंगा वस्त्र और सुहाग सामग्री चढ़ाई जाती है। कुछ लोग उपरोक्त अनाजों का भुना हुआ लावा भी चढ़ाते हैं इतना करने के उपरांत इस मंत्र के द्वारा पूजा की जाती है:


गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते।


स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्‌॥


ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि।


अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥


– अर्थात् हे देवी! आपने गंगा द्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली 


ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए।


इस प्रकार व्रत करने से स्त्री का सुहाग बना रहता है तथा संतान का कल्याण होता है। यह पूजन प्रातः काल किया जाता है या फिर दिन भर उपवास रखकर संध्या समय भोग लगाकर फल आदि के द्वारा व्रत को पूर्ण किया जाता है इस व्रत की कथा इस प्रकार है:


प्राचीन काल की बात है एक ग्वालिन थी वह गर्भवती थी प्रसव पीड़ा पर प्रसव पीड़ा थी वह पर वह गौरस बिक्री से चिंतित थी उसने सोचा अगर बच्चा हो गया तो यह गोरस रखा रह जाएगा अतः वह सिर पर मटकी रखकर गोरस बेचने चल पड़ी रास्ते में प्रसव पीड़ा बढ़ गई अंततः उसने बेर की झाड़ियों की ओट में जाकर शिशु को जन्म दिया वह शिशु को वहीं छोड़ गोरस बेचने चल पड़ी उस दिन हलषष् ी थी उसने गौरस भैंस का मिला दूध केवल भैंस का बताकर लोगों को गा और सब दूध बेच दिया जब वह बाजार गई थी तो वहां शिशु पड़ा था वहीं पर एक किसान हल जोत रहा था यकायक एक बैल भड़का बैल ने भागते समय बच्चे को कुचल डाला ग्वालिन लौट कर आई यह दृश्य देखकर विलाप करने लगी तभी एक ब्राम्हण वहां आया और कहा यह तेरे किए का फल है हल षष् ी के दिन तू ने गोरस क्यों भेजा वह बड़ा पश्चाताप करने लगी उसने उसी समय हलषष् ी का व्रत किया परिणामतः उसका बच्चा जीवित हो गया तब से यह प्रचलन में आ गया इस दिन का व्रत पुत्रवती माताएं बड़ी निष् ा के साथ करती हैं कुछ प्रांतों में यह व्रत ललही छ के नाम से भी जाना जाता है।


ललही छ माता सबकी रक्षा करें हलषष् ी माता सबकी रक्षा करें।



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