मध्य प्रदेश में सरकार गिरे या न गिरे पर लोकतंत्र हार चुका है
मध्य प्रदेश में सीएम कमलनाथ की कांग्रेस सरकार संकेत में है और इसी सियासी संकट के बीच भाजपा फिर से सत्ता में वापसी करने की फिराक में है. आज इस दौर की राजनीति केवल राज करने की नीति पर चलती है न कि राज कैसे करे करें इसकी नीति पर. तभी तो हमें विधायकों का बंधक बनाये जाने की तस्वीरें भी सामने आते हुई दिख जाती है तो वहीँ हम यह भी देख सकते हैं कि विधायकों का इस्तीफा सरकार में अविश्वास के मारे नहीं अपितु विपक्ष के साथ मिल जाने के कारण है. ऐसे में आपको कमलनाथ गवर्नर से मिलते हुए भी दिख जाते है तो आपको यह भी दिख जाता है कि श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद बनने के लिए उतावले और उनका भारतीय संसद के उच्च सदन में जाना अब पूरी तरह से साफ़ हो चुका है.
ऐसे में यह देखना बेहद ही दिलचस्प होगा कि कमलनाथ एक तरफ होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया का सामना कैसे कर सकेंगे. अब इस बात को नहीं भूल सकते कि दिग्गी राजा यानी दिग्विजय सिंह जो कि एमपी के पूर्व सीएम रहे उन्होंने ही अपने क्लोज साथ कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और फिर सीएम चेहरा बनवाकर सिंधिया को हाशिये पर डाले जाने का षड्यंत्र रचा था.
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अब मध्य प्रदेश की सियासत में सभी को कांग्रेस बनाम भाजपा का रण देखने को मिल ही जाएगा. अब क्या होगा कमलनाथ का ? क्या होगा ज्योतिरादित्य सिंधिया का ? वही होगा जो यहाँ कि आवाम चाहेगी और इसका इल्म भी शायद किसी को न हो पाए कि आखिर माजरा क्या है ? क्या हम ऐसे में समाज में जी रहे है जहाँ पर कोई भी नेता किसी के खिलाफ भी मोर्चा खोल सकेगा वह भी किसी भी अनैतिक तरीके से.
खैर नैतिकता की बात चली है तो न ही कांग्रेस सही है न ही भाजपा. कांग्रेस तो वैसे ही अपनी विचधारा का छद्म रूप गाँधी परिवार की जागीर होने के रूप में भुगत रही है तो वहीँ भारतीय जनता पार्टी केवल व्यक्तिवाद के चलते मोदीमय हो रही है और उसको अपनी पार्टी विद डिफरेंस वाली छाप अपने आप ही मिट चुकी है.
खैर मीडिया की भी खेमेबंदी ज़ारी है और हम मध्य प्रदेश के सियासी संकट के कलश से कुछ बाहर निकलता ज़रूर देख सकेंगे ....जय महाकाल !