कोई भी पार्टी जीत जाए लेकिन कुछ बदलने नहीं वाला
11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 का जनादेश सामने आ जायेगा और तमाम मीडिया चैनल्स और आउटलेट्स केवल तत्काल परिस्थिति पर केंद्रित रहेंगे लेकिन परिणाम के उपरान्त का परिदृश्य क्या होगा ? सच तो यह है कि देश के आइन में दिल्ली को लेकर स्थान एक अर्धराज्य का है इसलिए लोकतंत्र यहाँ पूरी तरह से स्थापित हो भी नहीं सकता है. आज आम आमदी पार्टी दोबारा सत्ता पा जाये या फिर भारतीय जनता पार्टी 2 दशक के वनवास को पार कर फिर सत्ता पर काबिज़ होती है लेकिन दिल्ली की जनता को पूरी सरकार नहीं मिलने जा रही है. इसके लिए पहल कर पहले ही वर्तमान सीएम अरविन्द केजरीवाल हार चुके है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाये रखने पर अपनी मोहर चला डाली थी.
क्या आप भी दिल्ली के निवासी है ? तो बताइये आपकी दिल्ली देश की राजधानी भर है या फिर एक राज्य भी है ? अगर राज्य है तो उसकी खुद की राजधानी क्या है ? पुलिस राज्य सरकार के पास क्यों नहीं आ सकती है ? आप अपने लिए वोट तो देते है लेकिन सरकार के पास आपके सब कुछ करने के अधिकार ही नहीं है !
इस बार के चुनाव में भगवान् जी से लेकर शाहीन बाघ के प्रोटेस्ट तक के मुद्दे चले लेकिन संविधान की दुहाई देने वाले लोगों को इसी संविधान से निकली एक धरा याद नहीं है. संविधान (साठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 ने दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश को औपचारिक रूप से दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है.
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एक प्रणाली शुरू की गई जिसके तहत निर्वाचित सरकार को कानून और व्यवस्था को छोड़कर व्यापक अधिकार दिए गए, जो केंद्र सरकार के पास रहा. अब किसी भी राज्य सरकार के लिए कानून व्यवस्था ही मुख्या मुद्दा होता है लेकिन जब उसके पास इसी का अधिकार न हो तो जनता अपनी सुरक्षा को सुनिश्चित कैसे करवाएगी ?
हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि आने वाले समय में इस मुद्दे को अधिक दबाया नहीं जा सकता है क्योंकि दिल्ली के अन्यायी अस्तित्व एक ज्वालामुखी की भाँती फिर फटेगा फिर भले ही एक आम आदमी की आदमी को इसकी समझ हो या नहीं और या फिर एक भारतीयता की पार्टी इस पर संज्ञान ले या न ले. दिल्ली में कुछ भी बदलने नहीं वाला है.