अब तो सब कुछ ख़त्म हो चुका था
राजेश रॉय और रश्मी चटर्जी की कहानी है जो बंगाल की राजधानी कोलकाता के चाइनाटाउन में सुनी हर किसी ने ज़ुबानी है. क्या ऐसा भी हो सकता है कि सब कुछ ख़त्म होने के बाद भी रिश्तो का मोल कुछ बच सा गया हो? नहीं न ? तो फिर यह कैसे हो सकता है कि अब तो सब कुछ ख़त्म हो गया हो ? ......अब तो सब कुछ ख़त्म हो चुका था ! राजेश ने रश्मी की लाश पर कुदाल मारते हुए रो-रोकर चींखते-चिल्लाते यह सारी बातें कह डाली. वह दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे लेकिन कास्ट की कांट ने उनके रिश्ते की दूरी को काट डाला था.
उन्ह दोनों ने साथ जिन्हे की कसमें खाई ज़रूर थी लेकिन राजेश ने उनको पत्थर की लकीर मान लिया था और रश्मी जो शायद एक समय तो उससे प्यार करती रही हो अपनी लालच और महत्वकांशा के चलते किसी दूसरे दुहाजा व्यक्ति की बीवी कम बाई बनने कोई तैयार हो गई.
हाई रे यह प्यार ! कितना सितम कर गई रश्मी तू राजेश पर जो तुम्हारे साथ एक हसीन ज़िन्दगी गुज़ारना चाहता था और तुम्हे अपने बच्चे की माँ के रूप में देखता था.
लेकिन तुमने क्या किया ? तुमने उसे ठोकर मार दी, वह गिड़गिड़ाया, तुमसे तुम्हारी ही गलतियां के लिए स्वयं माफ़ी मांग ली लेकिन तुम्हारे दोगलेपन वाले चरित्र ने उसकी सच्चाई नहीं देखी और तुमने उसे मार डाला. जब वह अंदर से मर गया फिर तेरा दिल नहीं पसीजा ! कैसी इंसान हो तुम. अगर तुम उससे प्यार करती ही नहीं थी और उससे पहले क्यों नहीं बोल पाई ? तुमने उससे प्यार किया ही नहीं था, तुम बस उसके साथ थी. जब तुम मनोज के साथ छह साल पुराना रिश्ता निभा तो उसके साथ भला ख़ाक निभा पाती कोई सम्बन्ध ?
अच्छा ही हुआ उसने तुम्हे भी मार दिया और खुद की मरने पर आ चुका है! अब बस जाते-जाते दोनों की बातें सुनो- "अमी शत्ति बोलचे ....तमी विश्वास नन्द को ....." अब राजेश ने अपना वचन पूरा निभा ही डाला! साथ जीने-मरने का क्योंकि अब तो सब कुछ ख़त्म हो चुका था! :)