दिल्ली से लेकर लंदन तक गोली-छुरी का बोलबाला है
पिछले हफ्ते के बीते दिनों देश की धड़कन राजधानी दिल्ली में सरेआम गोलियां चलने की वारदातें सामने आई. शुरुआत हुई जामिया मिलिया इस्लामिया में हो रहे तथाकथित प्रोटेस्ट में गोपाल नामक एक युवक द्वारा शादाब नामक एक मीडिया छात्र पर गोली चलाने की घटना से फिर तो शाहीन बाग़ में गोली चलने की बात सामने आ गई और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के गेट नंबर 5 पर भी गोली चल गई लेकिन हमारे देश की मीडिया का ध्यान इस पर नहीं गया कि ग्रेट ब्रिटेन की राजधानी
लंदन के स्ट्रीथम हाई रोड पर चाकूबाजी की संगीन घटना हुई.
एक शख्स अचानक से सड़क पर चल रहे लोगों पर चाक़ू से हमला करना शुरू कर देता है और लोगों को केवल एक तरह से अफ़सोस जताने का मौका ही मिल पाटा है पर कोई भी हिमायत कर के लंदन के लॉ एंड आर्डर पर एक भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता है और उससे पहले जो लंदन ब्रिज अटैक हुआ उसे भी आखिर कौन भूल सकता है? लेकिन वहां तो किसी हत्यारे या आतंकी का धर्म दिखता नहीं है इसलिए लोग जामिया नगर गोली काण्ड को इतना हाइपर होकर दिखाने लगते है कि जिसकी कोई सीमा ही नहीं है.
इतना ज़रूर है कि इन्टोलेरेंस यानी असहनशीलता पर बात करने से बेहतर है कि उस जगह भी उसे महसूस जहाँ सब कुछ परफेक्ट दिखाया जा रहा है. मीडिया को अपनी दोगलेपन को समाप्त कर देना चाहिए. अगर दिल्ली में गोलियां चली तो लंदन में भी चाकूबाजी हुई. अपराध केवल अपराध होता है और उसका किसी भू-भाग से कोई नाता नहीं हो सकता है.
लेकिन देश की मीडिया को केवल सनसनी और टीआरपी के पैसे वाले कॉम्बो से मतलब है. अब जब उसको यह बात अभी नहीं समझ में आ रही है कि गलती उसी से हुई है तो फिर आगे फिर कुछ और होना तो मुनासिब है भी नहीं. लंदन से दिल्ली या फिर दिल्ली से लेकर लंदन देख लीजिये, कह लीजिये और सुन लीजिये कि गुनाह तो होते ही है फिर चाहे कोई भी जगह,समय और लोग हो.