शरजील इमाम और फैज़ुल हसन : इस्लामिक आतंकी आंदोलन के पोस्टर बॉयज
शाहीन बाग़ का प्रोटेस्ट
एक सुनियोजित, प्रायोजित साज़िश है भारत के देश के टुकड़े करने के और यहाँ पर इस्लामिक खिलाफत स्थापित करनी की. क्या ऐसा कहना जल्दबाज़ी नहीं होगी कि यह लोग अब जिहाद की राह पर निकल चुके है. इनकी हरकतों को देख कर तो ऐसा ही लगता है. ऐसा लग रहा है मानो "डायरेक्ट एक्शन डे" की मांग फिर से उठ रही हो.
आज शरजील इमाम और फैज़ुल हसन के रूप में इस्लामिक आतंकी आंदोलन के दो पोस्टर बॉय सामने आ चुके है जिन्हे देख कर खिलाफत मूवमेंट वाले अली ब्रदर्स की याद आती है. दोनों ही धूर्त महात्मा गाँधी के साथ मिलकर हिन्दू-मुस्लिम की एकता का ढोंगी स्वांग रचा और तुर्की में इस्लामिक खलीफा को हटाए जाने को लेकर आंदोलन किया जिसमें हिन्दुओं पर ही उठा अत्याचार किया गया. शुक्र है वह आंदोलन फेल हो गया नहीं तो आने वाली युवा पीढ़ियों को इससे समस्या होना लाज़मी था.
अब फिर से अल्लाह की राह पर फनाह होने का वक़्त आ गया क्योंकि दर्द तो होना ही नहीं है. अब इन जेहादी लोगों के पास नए पोस्टर बॉयज की भरमार हो गई है. नाम है शरजील इमाम और फैज़ुल हसन. एक लेफ्ट के गढ़ जवाहरलाल नेहरू पार्टी का एक्स-स्टूडेंट है और दूसरा यानी फैज़ुल हसन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी छात्र संघ का पूर्व अध्यक्ष है.

शरजील इमाम असम को भारत से अलग कर देने की साज़िश को सारेआम मंच से उठाता है और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले उसका स्टिंग ऑपरेशन तक कर ले जाते हैं लेकिन कोई भी उसे गिरफ्तार नहीं कर पाया है. दूसरे है फैज़ुल हसन जो कहते है कि उनकी कौम वह है जो इस देश क्या किसी भी देश को बर्बाद करने में सक्षम है.
इन्हें देश के तिरंगे से क्या लेना-देना ? इनका टारगेट तो वास्तव में अपने स्टार वाले हरे झंडे को फहराना है. उम्माह ही इनके अपने लोग जहाँ एक हिन्दू से लेकर नास्तिक तक का कोई स्थान नहीं है. क्या हम इनके खिलाफ नहीं हो सकते ? आज भारत के हिन्दू समाज के विरूद्ध ऐसी साज़िश रची जा रही है जिसमें शरजील और फैज़ुल जैसे युवा जेहादी फ़र्ज़ी क्रांति का प्रतीक बन इस्लामवाद की मूवमेंट को तेज़ कर रहे है. ऐसे पोस्टर बॉयज को सबक सीखाने का वक़्त आ गया है नहीं तो यह देश नहीं बचेगा.