आईएमएफ को भी सताने लगी भारत के इकोनॉमिक स्लोडाउन की चिंता
भारत को अपने आर्थिक ठहराव यानी इकोनॉमिक स्लोडाउन को पलटने के लिए ठोस एक्शन्स लेने की ज़रुरत है जिससे विश्व स्तर पर सबसे बड़े इकोनॉमिकल ग्लोबल इंजन के तौर पर वह वापसी कर अपना योगदान दे सके. यह कहना हमारा नहीं बल्कि इंटरनेशनल मोनेटरी फंड यानी आईएमएफ का है.
लगातार घटती जा रही खपत, निवेश और टैक्स रेवेन्यू के साथ अन्य फैक्टर्स जैसे वैश्विक मंदी ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक भारत की प्रगति पर रोक लगा दी जो न सिर्फ इस देश के लिए नहीं अपितु पूरी दुनिया के लिए एक चिंता का विषय है.
इकोनॉमिक साइकिल के कांसेप्ट में रिसेशन और बूम का जिक्र दिया है लेक्लिन आर्थिक ठहराव एक कम अवधि की परिस्तिथि है जिसका लम्बे समय तक रहना किसी के लिए भी हितकारी नहीं है.
अपने एनुअल रिव्यू में भी इंटरनेशनल मोनेटरी फंड ने इसका साफ़ तौर ज़िक्र अपने फ़िक्र के साथ कर दिया है. अब तो मोदी सरकार का बैकफुट पर जाना स्वाभाविक है क्योंकि अभी तक वह देश के थिंक टैंक्स और इंस्टीटूशन्स को नकार रही थी या फिर उनकी अवहेलना कर रही थी लेकिन अब आईएमएफ की मुहर के बाद पिक्चर क्लियर हो चुकी है कि देश में आर्थिक हालत अच्छे तो बिलकुल नहीं है.
डॉ सुब्रमण्यम स्वामी जो खुद एक विश्व प्रख्यात अर्थशाष्त्री है और भाजपा के राज्यसभा सांसद है, ने कहा था कि देश की विकास दर ३.५ फीसदी नापी जा सकती है क्योंकि सरकार के पास अपना तरीका है किन्तु उनके अनुसार यह १.५ फीसदी है और यह नेगेटिव में जाने वाली है.
इससे पहले भी दुनिया की सबसे बड़े मनी लेंडर आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने पिछले सप्ताह कहा था कि भारत की मंदी ने उन्हें " बुरी तरह से आश्चर्यचकित" कर दिया था, और कहा कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुमान को डाउनग्रेड करके दिखाया जायेगा.
भारत के आर्थिक स्लोडाउन को समझे तो देश की सरकार के पास विकास को समर्थन देने के लिए खर्च को बढ़ावा देने के लिए सीमित स्थान है, विशेष रूप से उच्च ऋण स्तर और बढे ब्याज भुगतान के चलते.
ऐसे में एक तरफ 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी बनने का मुंगेरीलाल वाला सपना है तो वहीँ रघुराम राजन, अरविन्द पणगनिया से लेकर डॉ स्वामी जैसे राइट विंग आर्थिक विशेषज्ञों की जगह अनुभवहीन और अव्यवहारिक निर्मला सीथारमन और शक्तिकांत दास जैसो पर भरोषा करना प्रधानमंत्री मोदी के इस सपने को तो तोड़ेगा ही साथ ही देश को फिर से 1993 के इकोनॉमिक क्राइसिस की और ले जायेगा.अभी भी वक़्त है पीएम मोदी जी थोड़ा चिंता करिये क्योंकि अब तो आईएमएफ भी करने लगा है.