"भाजपा मुक्त भारत" विपक्ष के लिए एक उम्मीद की किरण
कल ट्राइबल राज्य झारखण्ड विधानसभा चुनाव के नतीजे देश में सबके सामने आ गए. जैसा कि एग्जिट पोल्स दर्शा रहे थे वही हुआ और भारतीय जनता पार्टी की हार हो गई. सीएम रघुबर दास जो प्रदेश के पहले गैर-आदिवासी और पूरा कार्यकाल पूरा करने वाले सीएम रहे , अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रह गए और बागी भाजपा नेता सरयू राय से हार गए. इन सबसे परे भाजपा के लिए यह हार खतरे की घंटी है.
81 सीटों वाली झारखण्ड विधानसभा में
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन 47 सीटों के साथ मजबूत बहुमत हासिल कर लिया है.
झारखण्ड की यह हार केंद्र की सत्ता पर आसीन भारतीय जनता पार्टी के लिए तगड़े तमाचे जैसा है जिसने मर से चुके विपक्ष में जान डालने का काम कर दिया है.
खुद कभी "कांग्रेस मुक्त भारत" का नारा बुलंद कर एक सूत्री पोलिटिकल एजेंडे पर काम करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष 2024 लोकसभा चुनाव के लिए एक नया अघोषित मिशन दे दिया है जिसका नाम है -
"भाजपा मुक्त भारत".
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई में पूरा इलेक्शन और सिटिंग चीफ मिनिस्टर रघुबर दास को साइडलाइन करके ही चुनाव लड़ने की रणनीति जब भाजपा के लिए बैकफायर कर जाए तो इसमें किया भी क्या जा सकता है ? एक ब्रांड के नाम को बेच-बेच कर कब तक काम चलाया जा सकता है ? आखिर भगवा पार्टी के मुख्यमंत्री कब जा कर समझेंगे कि विधानसभा के चुनाव राज्य के मुद्दों पर लड़े जाते है न कि राष्ट्रीय मुद्दों पर.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान , महाराष्ट्र और अब झारखण्ड हारने के बाद भारतीय जनता पार्टी के पास अभी भी मौका है मंथन कर हार के कारणों का पता लगाने का और नई प्लानिंग के साथ चुनावी रण में वापसी करने का.

अभी भी उसके पास 16 राज्य और 42 फीसदी आबादी पर राज है और इसे बनाये रखना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. व्यक्तिवाद से ग्रसित पार्टी को संगठन शक्ति के मूल-मन्त्र पर वापस करने की ज़रुरत है नहीं तो 2024 में वह विपक्ष में बैठने लायक भी शायद न बच पाए. अंत में राजनीति अप्रत्याशित होती है और जो हाल कांग्रेस का हुआ वही कल भाजपा का हो जाए तो इसमेंउ हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि दिन के आखिर में तो भारत की जनता ही सर्वेसर्वा है.