Do you know the "Lachit Borfukan" award?
indian history

19-Dec-2019

Do you know the "Lachit Borfukan" award?

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प्रिय पा क बंधुओं आपका हमारे इस ब्लॉग सेक्शन में स्वागत है। आज मै अपने इस ब्लॉग में एक पुरानी परन्तु बहुत ही रोमांचित वीरगाथा के बारे में आपको अवगत कराऊंगा।
परन्तु उससे पहले मैं आप से एक अति महत्वपूर्ण जानकारी साझा करना चाहता हूँ। जैसा की हम सभी लोग अपने देश की एक अति महत्वपूर्ण संस्थान जिसे हम NDA (National Defence Academy (India)) के नाम से जानते हैं। के बारे में तो जानते ही होंगे। 

आपको यह तो ज्ञात होगा कि NDA (National Defence Academy) में जो बेस्ट कैडेट होता है,उसको एक गोल्ड मैडल दिया जाता हैं लेकिन क्या आपको यह ज्ञात हैं कि उस मैडल का नाम "लचित बोरफुकन" है...?

Do you know the Lachit Borfukan award

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कौन और क्या हैं ये "लचित बोरफुकन"...पोस्ट को पूरा पढ़ने पर आपकों भी ज्ञात हो जाएगा कि क्यों वामपंथी और मुगल परस्त इतिहासकारों ने इस नाम को हम तक पहुचने नहीं दिया...? 

क्या आपने कभी सोचा है कि पूरे उत्तर भारत पर अत्याचार करने वाले मुस्लिम शासक और मुग़ल कभी बंगाल के आगे पूर्वोत्तर भारत पर कब्ज़ा क्यों नहीं कर सके...?

कारण था वो हिन्दू योद्धा जिसे वामपंथी और मुग़ल परस्त इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नो से गायब कर दिया - असम के परमवीर योद्धा "लचित बोरफूकन" अहोम राज्य(आज का आसाम या असम)के राजा थे चक्रध्वज सिंघा और दिल्ली में मुग़ल शासक था औरंगज़ेब...
औरंगज़ेब का पूरे भारत पे राज करने का सपना अधूरा ही था बिना पूर्वी भारत पर कब्ज़ा जमाये...इसी महत्वकांक्षा के चलते औरंगज़ेब ने अहोम राज से लड़ने के लिए एक विशाल सेना भेजी इस सेना का नेतृत्व कर रहा था राजपूत राजा राजाराम सिंह राजाराम सिंह औरंगज़ेब के साम्राज्य को विस्तार देने के लिए अपने साथ ४००० महाकौशल लड़ाके,३०००० पैदल सेना,२१ राजपूत सेनापतियों का दल,१८००० घुड़सवार सैनिक,२००० धनुषधारी सैनिक और ४० पानी के जहाजों की विशाल सेना लेकर चल पड़ा अहोम (आसाम)पर आक्रमण करने...अहोम राज के सेनापति का नाम था "लचित बोरफूकन"

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कुछ समय पहले ही लचित बोरफूकन ने गौहाटी को दिल्ली के मुग़ल शासन से आज़ाद करा लिया था...इससे बौखलाया औरंगज़ेब जल्द से जल्द पूरे पूर्वी भारत पर कब्ज़ा कर लेना चाहता था राजाराम सिंह ने जब गौहाटी पर आक्रमण किया तो विशाल मुग़ल सेना का सामना किया अहोम के वीर सेनापति "लचित बोरफूकन" ने...मुग़ल सेना का ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे रास्ता रोक दिया गया...इस लड़ाई में अहोम राज्य के तकरीबन दस हजार सैनिक मारे गए और "लचित बोरफूकन" बुरी तरह जख्मी होने के कारण बीमार पड़ गये...अहोम सेना का बुरी तरह नुकसान हुआ...राजाराम सिंह ने अहोम के राजा को आत्मसमर्पण ने लिए कहा जिसको राजा चक्रध्वज ने "आखरी जीवित अहोमी भी मुग़ल सेना से लडेगा" कहकर प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया...लचित बोरफुकन जैसे जांबाज सेनापति के घायल और बीमार होने से अहोम सेना मायूस हो गयी थी अगले दिन ही लचित बोरफुकन ने राजा को कहा कि जब मेरा देश,मेरा राज्य आक्रांताओं द्वारा कब्ज़ा किये जाने के खतरे से जूझ रहा है,जब हमारी संस्कृति,मान और सम्मान खतरे में हैं तो मैं बीमार होकर भी आराम कैसे कर सकता हूँ...?

मैं युद्ध भूमि से बीमार और लाचार होकर घर कैसे जा सकता हूँ...?

हे राजा युद्ध की आज्ञा दें...?

इसके बाद ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सरायघाट पर वो ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया,जिसमे "लचित बोरफुकन" ने सीमित संसाधनों के होते हुए भी मुग़ल सेना को रौंद डाला...अनेकों मुग़ल कमांडर मारे गए और मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई जिसका पीछा करके "लचित बोफुकन" की सेना ने मुग़ल सेना को अहोम राज के सीमाओं से काफी दूर खदेड़ दिया...इस युद्ध के बाद कभी मुग़ल सेना की पूर्वोत्तर पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हुई ये क्षेत्र कभी गुलाम नहीं बना

ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सरायघाट पर मिली उस ऐतिहासिक विजय के करीब एक साल बाद(उस युद्ध में अत्यधिक घायल होने और लगातार अस्वस्थ रहने के कारण) माँ भारती का यह अदभुद लाड़ला सदैव के लिए माँ भारती के आँचल में सो गया...!!!

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