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13-Dec-2019
What If We All Die?
Playing text to speech
क्या हो अगर हम न रहे ?
अगर हम सब न रहे तो क्या? आप सोचेंगे कि यह क्या सवाल हुआ ? सवाल तो है जी आप भले ही इसका जवाब न दे सके वह आपकी मर्ज़ी. आप इसको समझ न सके वह आपकी अखलियत और अब यह अब आपको अजीब लगे तो यह आपकी ज़ेहनियत को दर्शाता है.
"डेपॉपुलेशन" यानी जनसंख्या ह्रास एक ऐसी ही खतरनाक बीमारी वाली सोच है जो इस सवाल का सीधा जवाब है. इसका सीमित अर्थ एक क्षेत्र विशेष की जनसँख्या का कम होना.
इसके पीछे कारण तमाम हो सकते है जैसे मानवीय हिंसा, कम प्रजनन दर, शहरी क्षय, किसी बीमारी का प्रकोप आदि. पेहरिस्त तो बहुत ही बढ़ी है लेकिन है तो ! हर विषय या मुद्दे की तरह इसके गुण-अवगुण, पक्ष-विपक्ष के पहलु है जिनके ऊपर गौर किया जा सकता है, चर्चा-परिचर्चा की जा सकती है.
जो लोग इसके पक्ष में है उनका कहना है कि इससे पर्यावरण से जुड़े इंडीकेटर्स जैसे एयर क्वालिटी सुधार, वृक्षारोपण, प्रति-व्यक्ति आय वृद्धि आदि जैसे अच्छी बातों की पूर्ति या सम्भावना की वकालत करते है.
अब जो विरोधी पक्ष है उनकी भी सुध ले लीजिये. उनका कहना है कि इससे लोगों के पास डिमांड & सप्लाई की कमी हो जाएगी, संसाधन इतने ज़्यादा हो जायेंगे कि उनका पूरा इस्तेमाल नहीं हो सकेगा, मानव सभ्यता की व्यवस्था बिगड़ या फिर समाप्त सी हो जाएगी और यह प्रकृति के भी खिलाफ होगा.
सिर्फ प्रकृति वाला पक्ष मान लीजिये तो पुरानी कहावत दिमाग में दौड़ लगा देती है कि जो भी प्रकृति के खिलाफ काम करेगा उसके मौत निश्चित है.
यथार्थ तो यह है कि डिपॉपुलेशन यानी जनसँख्या ह्रास की अवधारणा वास्तव में एक कभी पूरा न हो सकने वाली एक अव्यवहारिक प्रक्रिया है जिसका संकल्पित लक्ष्य एक अबूझ पहेली की तरह है. अब इतना सब पढ़ लेने और जान लेने के बाद सवाल वहीँ टिका हुआ है कि यदि इंसान न रहा तो क्या हो सकता है ? क्या हो अगर हम न रहे ?
शायद धरती घूमती रहे और इस पर कुछ जानवर या अन्य जीव फिर वह एलियंस ही क्यों न हो आकर रहने लगे पर न ही इंसान न होगी इंसानियत. ऐसा तभी होगा जब हम सभी न रहे तो.
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