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12-Dec-2019, Updated on 12/13/2019 1:41:37 AM
Supreme Court Has Turn Disinterested In Old Cases
Playing text to speech
सुप्रीम कोर्ट अब अयोध्या मामले से ऊब चुका है
अयोध्या भूमि विवाद के अंतगर्त नास्तिक मान्यता रखने वाले तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की 5 जजों की खंडपी ने एक मत से यानी सर्वसम्मति से अपना फैसला हिन्दू पक्ष के वास्ते दे दिया और वहां "श्रीराम जन्भूमि ही है" की हज़ारो साल पुरानी पुकार जो अति धैर्यवान और सहनशीलता से परिपूर्ण हिन्दू समाज सुनवा रहा था उसे आखिरकार अपने बेहरे हो चुके कानो से सुन लिया.
इसके बाद भी लिबरल, शांतप्रिय जेहादी, गांधीवादी, वामपंथी ब्रिगेड को बहुत ज़्यादा मिर्ची सी लग गई तो वो नए सीजेआई जस्टिस बोबडे के आगमन पर आशावान हो उ ी और अपनी याचिकाओं को लेकर सीधे सुप्रीम कोर्ट में जा पहुँची जैसे मंदिर निर्माण तो पहले से ही शुरू हो चुका हो जबकि सत्य तो यह है कि अभी तक तो हिन्दुओं में ट्रस्ट बनने को लेकर मंथन और आपसी खींचतान चल रही है.
ताज़ा खबर यही है कि देश के सबसे लम्बे चले केस में सुप्रीम कोर्ट ने अब सुनवाई करने से मन कर दिया है. आज यानी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की खंडपी ने 18 याचिकाओं को ुकराते हुए कह दिया कि अब वह इस पर आगे सुनवाई नहीं करेगी.
अब पुनर्विचार याचिका ख़ारिज हो चुकी है तो खान मार्किट यानी इंटेलेक्चुअल बुद्धिजीवियों की चीख निकल आ रही है. उनको समझ ही नहीं आ रहा है कि किया क्या जाए और आखिर में उनके पास सिर्फ अब क्यूरेटिव पेटिशन का ही सहारा जिससे कुछ न होने वाला है.
जो हिन्दू हित की बात करेगा वही इस देश पर राज करेगा सुप्रीम कोर्ट को भी समझ में आ चुकी है इसलिए तो उसके पास दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म बहुसंख्यक समाज को न्याय देने के अलावा कोई और चारा नहीं है.
घबराइए मत सुप्रीम कोर्ट कोई हिंदुत्व की राह पर नहीं चल रहा है बल्कि उसने तो अब पॉलिटिक्स की नई परिभाषा गढ़ दी है वह भी उबाऊ वाली. वास्तव में सुप्रीम कोर्ट ऊब चुकी है पुराने मामले को खींचते-खींचते. अब उसके सामने नए मामले आने चाहिए ताकि वह महान बन सके.
जो चीज़ संसद न कर पाई वह सुप्रीम कोर्ट ने आधे घंटे में 18 याचिकाओं को खारिज कर के कर दिया. अब उबाऊ हो चुकी सुप्रीम कोर्ट न ही नई व्यायखा कर पा रहा है, न कोई नया लैंडमार्क जजमेंट न ही किसी बड़े कोर्ट मसले का निपटारा.
पूर्व सीजेआई जे एस ाकुर एक पब्लिक फंक्शन में रो देते है तो मानो न्याय तंत्र की नैतिक चेतना जग गई हो. लेकिन अब के घटनाक्रम साफ़ तौर पर बताते है कि सच क्या है ! सुप्रीम कोर्ट ऊब चूका वही पुराने मामलो का व्यंजन चख के और अब कुछ नया खाने की उसकी ख्वाइश है.
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