जनसँख्या नियंत्रण कानून वक़्त की मांग है
देश इस वक़्त नागरिकता संशोधन बिल और नेशनल सिटीजनशिप रेजिस्टर यानी एनआरसी के मुद्दे को लेकर राजीनतिक धूरी पर घूम रहा है. अब ऐसे में इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे - जनसँख्या नियंत्रण कानून को लेकर चर्चा आखिर हो तो कहाँ से होगी ? सबसे शांतिप्रिय मजहब के भले चंगे (तथाकथित) लोग आज एक से दो और फिर 2 से 4 करते हुए 4 बीवी 40 बच्चों की फ़ौज खड़ी कर दूसरों के मैदानों पर कब्ज़े कर रहे हैं, नमाज़ पढ़ने के नाम पर और साथ ही धार्मिक आस्था के अधिकार के नाम पर बहुसंख्यक शांतिप्रिय समाज पर ज़ोर डालता है.
अब बाहर से धार्मिक माइनॉरिटीज जैसे- पारसी, ईसाई, जैन, बुद्ध समाज को तो इस लिस्ट में शामिल किया गया है लेकिन लिब्रान्डु (लिबरल), सेक्युलर लोगों की छाती में दर्द होना शुरू हो चुका है. लेकिन दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लोगों का तो गुरूर इतना ज़्यादा हो चला है कि वह अब सावन के अंधे के माफिक सब कुछ हरा-हरा ही देख पा रहे हैं. क्या फायदा है बाहर के लोगों को अपने घर का बनाने का जब घर के भीतर घात लगाए बैठे जयचंदो का इलाज आपके पास नहीं है ?

अब इससे स्पष्ट बात क्या होगी कि खुद को नास्तिक कहने वाला देश चीन भी शिनजियांग के मुस्लिम लोगों को तमीज़ सीखाने के नाम पर टार्चर कैम्प्स में रख रहा है और साथ ही उनकी हर धार्मिक चीज़ पर ग्रहण लगा चुका है.
लेकिन हम तो छोटे का चारा बनने को चल चुके हैं. एक भी कट्टर बहुसंख्यक किसी दूसरे शांतिप्रिय जेहादी की पोल खोल के रख देता है तो उसे अब हिन्दू विरोधी ही मान लिया जाता है. बाहर के लोगों को मोदी सरकार तभी बसा पायेगी जब अंदर से देश के दुश्मनो की फ़ौज जो हरे झंडे वाले मज़हब के नाम पर बढ़ रही है वह तुरंत कण्ट्रोल में की जाए.
नारी का पूरा सम्मान था और रहेगा और वह किसी भी तरह बच्चे पैदा करने की मशीन समझी नहीं जा सकती है जिसके तहत यदि हिन्दू महिला हम दो हमारे दो के नियम का पालन कर रही है तो ज़रुरत है कि हम दो हमारे दो का पालन मुस्लिम महिला भी करे. वजीर-ए-आजम मोदी जी पहले आप जनसँख्या को नियंत्रण में करे तब जाकर आपको देश को आगे कर पाएंगे.