Congress and corruption
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31-Aug-2019, Updated on 8/31/2019 3:12:28 AM

Congress and corruption

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" मेरा पानी उतरते देख, किनारे पर घर मत बना लेना, मैं समंदर हूँ, लौटकर जरूर आऊंगा " :- अमित शाह 
 [गिरफ्तारी के वक्त सन 2010/25 जुलाई ] 

नोटबन्दी की कहानी चिदबंरम का जेल जाना तय था....

दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला खुलेगा 2019 के बाद जो शायद दुनिया मे कही नही हुआ होगा और इस महाघोटाले का मुख्य अभियुक्त है चिदंबरम इसको पढ़िए की क्यों किया गया अचानक नोटबन्दी का फैसला और क्यों टूट गयी पाकिस्तान की अर्थव्यस्था सबूत भी बाहर आएंगे जांच हो रही है इसको पढ़ के आपके पैर के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी

पीएम मोदी ने नोटबंदी करके इस घोटाले को रोक तो दिया, मगर उसके बाद ये बात निकल कर सामने आयी कि देश में बिलकुल असली जैसे दिखने वाले एक ही नंबर के कई नोट चल रहे थे। ये ऐसे नोट थे, जिन्हे पहचानना लगभग नामुमकिन था क्योकि ये उसी कागज़ पर छपे थे जिसपर भारत सरकार नोट छपवाती है।

समाचार के अनुसार डे ला रू जोकि एक ब्रिटिश कंपनी है, इसके साथ मिलकर तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम एक बड़ा खेल खेल रहे थे, जिसमे उनके एडिशनल सचिव अशोक चावला और वित्त सचिव अरविंद मायाराम भी शामिल थे।

कैसा खेला गया घोटाले का खेल?

कहा जा रहा है कि घोटाले का प्रारम्भ 2005 में तब हुई जब वित्त मंत्रालय में अरविन्द मायाराम वित्त सचिव के पद पर थे और अशोक चावला एडिशनल सचिव के पद पर थे। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 2006 में सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मींटिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड एक कंपनी बनाई गयी, जिसके मैनेजिंग डायरेक्टर अरविंद मायाराम थे और चेयरमैन अशोक चावला थे, यानी दो सरकारी अधिकारी पद पर रहते हुए इस कंपनी को चला रहे थे।

बिना एसीसी के अनुमोदन के एमडी और चेयरमैन की नियुक्ति

इस प्रकार नियुक्तियों के लिए अपॉइंटमेंट्स कमिटी ऑफ़ कैबिनेट (ACC) के सामने विषय को रखकर उसके अनुमोदन की आवश्यकता होती है, किन्तु चिदंबरम ने भला कब नियम-कायदों की परवाह की, जो अब करते,अर्थात् ACC के सामने इन नियुक्तियों का विषय लाया ही नहीं गया और ऐसे ही इनकी नियुक्ति कर दी गयी।

इसके बाद असली खेल शुरू हुआ। इस घोटाले में चिदंबरम के दाएं व बाएं हाथ बताये जाने वाले अशोक चावला व् अरविंद मायाराम ने भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (BRBNMPL), जोकि नोटों की छपाई का काम देखती है, उससे कहा कि उनकी कंपनी के साथ मिलकर सिक्योरिटी पेपर प्रिंटिंग के सप्लायर को ढूंढो। जिसके बाद पहले से ब्लैकलिस्टेड की जा चुकी डे ला रू कंपनी से नोटों की छपाई में इस्तमाल होने वाले सिक्योरिटी पेपर को लेना जारी रखा गया।

क्या इसके लिए चिदंबरम को घूस दी गयी थी? इस ब्रिटिश कंपनी द्वारा या पाकिस्तान के आईएसआई द्वारा चिदंबरम को पैसा दिया जा रहा था?

ये जांच का विषय है। बहरहाल पहले जानते हैं कि डे ला रू को क्यों बैन किया गया था और पाक आईएसआई का इस घोटाले में क्या भूमिका है?

डे ला रू कंपनी का खेल

दरअसल वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान नकली मुद्रा रैकेट का पता लगाने के लिए सीबीआई ने भारत नेपाल सीमा पर विभिन्न बैंकों के करीब 70 शाखाओ पर छापेमारी की, तो बैंकों से ही नकली करेंसी पकड़ी गयी। जब पूछताछ के गयी तो उन बैंक शाखाओं के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि जो नोट सीबीआई ने छापें में बरामद किये हैं वो तो स्वयं रिजर्व बैंक से ही उन्हें मिले हैं।

ये एक बेहद गंभीर खुलासा था क्योंकि इसके अनुसार आरबीआई भी नकली नोटों के खेल में संलिप्त लग रहा था! हांलाकि इतनी अहम् खबर को इस देश की मीडिया ने दिखाना आवश्यक नहीं समझा क्योकि उस समय कांग्रेस सत्ता में थी।

इस खुलासे के बाद सीबीआई ने भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में भी छापेमारी की और आश्चर्यजनक तरीके से भारी मात्रा में 500 और 1000 रुपये के जाली नोट पकडे गए। आश्चर्य की बात ये थी कि लगभग वैसे ही समान जाली मुद्रा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा भारत में तस्करी से पहुँचाया जाता था।

अब प्रश्न उ ा कि यह जाली नोट आखिर भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में कैसे पहुंच गए? आखिर ये सब देश में चल क्या रहा था?

जांच के लिए शैलभद्र कमिटी का ग न हुआ और 2010 में कमिटी उस वक़्त चौंक गयी जब उसे ज्ञात हुआ कि भारत सरकार द्वारा ही समूचे राष्ट्रकी आर्थिक संप्रभुता को दांव पर रख कर कैसे अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को 1 लाख करोड़ की छपाई का ेका दिया गया था!

जाँच हुई तो ज्ञात हुआ कि डे ला रू कंपनी में ही घोटाला चल रहा था। एक षड्यंत्र के तहत भारतीय करेंसी छापने में उपयोग होने वाले सिक्योरिटी पेपर की सिक्योरिटी को घटाया जा रहा था ताकि पाकिस्तान सरलता से नकली भारतीय करेंसी छाप सके और इसका उपयोग भारत में आतंकवाद फैलाने में किया जा सके!

इस समाचार के सामने आते ही भारत सरकार द्वारा डे ला रू कंपनी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। मगर अरविन्द मायाराम ने इस ब्लैकलिस्टेड कंपनी से सिक्योरिटी पेपर लेना जारी रखा। इसे लेने के लिए उसने गृह मंत्रालय से अनुमति ली। कहा गया कि ये फाइल चिदंबरम को दिखाई ही नहीं गयी, जबकि ये बात मानने लायक ही नहीं क्योकि वित्त मंत्रालय से यदि गृहमंत्रालय को कोई भी पत्र भेजा जाता है तो पहले अप्रूवल के लिए वित्तमंत्री के सामने पेश किया जाता है।

क्या है पाक आईएसआई की भूमिका ?

समाचार के अनुसार डे ला रू कंपनी से भारत को दिए जाने वाले सिक्योरिटी पेपर के सिक्योरिटी फीचर को कम किया जा रहा था, ये कंपनी पाकिस्तान के लिए भी सिक्योरिटी पेपर छापने का काम करती है। जिसके बाद ये आरोप लगे कि इस कंपनी द्वारा भारत का सिक्योरिटी पेपर पाकिस्तान को गुपचुप तरीके से दिया जा रहा

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