How do words change?
By
Sanat Shukla
शब्दों के मायने कैसे बदल जाते हैं?
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आज अगर किसी व्यक्ति को “उल्लू” कह दिया जाये तो क्या मतलब निकाला जाएगा? वैसे तो ये पूछने की जरूरत भी नहीं है क्योंकि किसी को उल्लू कहने का मतलब उसे बेवकूफ कहना ही होता है। अगर कहीं आप ऐसा सोच रहे हैं कि भारत में हिन्दी या मिलती जुलती बोलियों-भाषाओं में किसी को उल्लू कहने का मतलब परंपरागत रूप से बेवकूफ कहना होता है तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है। श्री यानी लक्ष्मी जी के इस वाहन को परंपरागत रूप से बुद्धिमानी का प्रतिक माना जाता रहा है। मिलती-जुलती सी ग्रीक देवी एथेना का वाहन भी उल्लू ही होता है।
महाभारत के समय तक अगर देखें तो “उलूक” यानी उल्लू तो सीधा-सीधा नाम में ही मिलता है। शकुनी और अर्श के पुत्र का नाम उलूक था। अपने पिता को वापस गंधार ले जाने यही उलूक आता है। महाभारत का युद्ध शुरू होने से ठीक पहले यही उलूक कौरवों का दूत बनकर युधिष्ठिर के पास आता है और बताता है कि कौरवों को पांडवों का प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं। इसी के बाद युधिष्ठिर ने सेना को आगे बढ़ने के आदेश दिए थे। ये उलूक महाभारत के युद्ध में अट्ठारहवें दिन शकुनी के साथ ही सहदेव के हाथों मारा गया था। अब हो सकता है ये लगे कि शायद शकुनी का पुत्र होने जैसी वजह से उलूक या उल्लू को बेवकूफ कहा जाने लगा होगा, तो ऐसा भी नहीं दिखता।
रामायण काल में एक ऋषि थे विश्वामित्र। ये राम-लक्ष्मण को दशरथ के दरबार से ताड़का वध के लिए ले जाने के लिए भी जाने जाते हैं। इनका एक नाम कौशिक भी होता है। अपने कई अर्थों में से इसका एक अर्थ उल्लू से सम्बंधित भी होता है। उल्लू के इस समानार्थक वाले नाम के कई ऋषि-मुनि नजर आते रहते हैं। अंग्रेजी की जानी पहचानी सी “प्रिंस ऑफ़ पर्शिया” में एक जगह नायक अपना नाम “काकोलूकीय” बताता है। असल में ये कोई नाम नहीं बल्कि पंचतंत्र का एक हिस्सा है जिसका मतलब होगा “कौवों और उल्लुओं के बारे में”। पंचतंत्र नाम की प्रसिद्ध सी रचना में कौवों और उल्लुओं की आपसी लड़ाई के प्रसंग का यही नाम है। यहाँ भी उल्लुओं को मूर्ख नहीं बल्कि चतुर ही दर्शाया गया है।
वापस महाभारत पर आयें तो अट्ठारहवें दिन कौरव पक्ष के सभी योद्धाओं के मारे जाने पर भी तीन लोग बचे हुए थे। इनमें से एक अश्वत्थामा को नींद नहीं आ रही थी और बीच रात में वो आकर कृतवर्मा और कृपाचार्य को आँखों देखी एक घटना सुनाकर कहता है कि उसे पांडवों पर विजय का मार्ग सूझ गया है ! जब उससे पूछा जाता है कि वो क्या करने वाला है तो वो रात में आक्रमण करने की योजना बताता है। उसने थोड़ी ही देर पहले एक वृक्ष पर मौजूद कौवों के बीच अचानक सफ़ेद सा कुछ देखा था। ये एक बड़ा सा उल्लू था। सोते हुए कौवों पर उल्लू को अचानक हमला करके कई कौवों को मार गिराते देखकर ही अश्वत्थामा को रात में सोते पांडवों पर हमला करने की सूझी थी।
उल्लू से जुड़ी एक और कहानी भी आती है। इस कहानी में लोमष नाम का एक बिल्ला किसी शिकारी के जाल में फंसा होता है और उसी जाल में फंसे चारे को एक पलित नाम का चूहा खा रहा होता है। तभी चूहे को दिखता है कि पेड़ पर आकर एक उल्लू बैठा है जो उसी पर घात लगाए हुए है। उसी वक्त एक नेवला भी चूहे का शिकार करने के इरादे से पहुँच जाता है। कोई भागने का रास्ता न देखकर चूहा बिल्ली से संधि कर लेता है। वो बिल्ली के नीचे छुपकर जाल को कुतरता तो है मगर बहुत धीमी गति से। बिल्ला जब उससे पूछता है कि वो इतना धीमे क्यों कुतर रहा है तो वो बताता है कि सही समय से पहले बिल्ले को छुड़ाया तो सबसे पहले तो बिल्ला ही उसे चट कर जाएगा |
रात भर चूहा बिल्ले के नीचे ही छुपा रहा और सुबह होने पर जब शिकारी की आहट से नेवला भागा और उल्लू दिन में शिकार करने में असमर्थ हुआ तब आखरी मौके पर चूहे ने जाल कुतरा। बिल्ला शिकारी से बचकर भागा और चूहा बचकर अपने बिल में। मोटे तौर पर ये कहानी इसलिए सुनाई जाती है ताकि समझाया जा सके सही समय से पहले कोई काम कर देने से उस काम का कोई मोल नहीं रह जाता। ज्यादातर पहले या बाद में काम करने पर नुकसान ही उठाना पड़ता है। ये काफी कुछ वैसा ही है जैसे अभी (यानी गलत समय पर) लोगों के लिए उल्लू शब्द का इस्तेमाल करना। किसी को सम्मान देने के लिए उल्लू कहने की परंपरा काफी पहले ही बीत चुकी है, अभी शायद उसका कुछ नया वाला अर्थ ही लिया जाएगा।
हालिया अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से जोड़कर देखा जाए तो हाल ही में अमरीका वाले ट्रम्प से भारत वाले मोदी के संबंधों को लेकर चर्चाएँ काफी गर्म रही थीं। अल्पसंख्यकों पर आई किसी रिपोर्ट के हवाले से काफी कुछ कहा जा रहा था। फिर कश्मीर पर मध्यस्थता को लेकर भी काफी बातें हुईं। इन्हीं सब के बीच सही समय का इन्तजार करने के बाद कश्मीर पर भारत सरकार ने एक कड़ा और काफी दिनों से प्रतीक्षित फैसला भी ले डाला। इसके बाद पता चला कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या होगा और घरेलु मुद्दों पर क्या हो रहा है का रोना रोते कई जीवों को नए मुद्दे ढूँढने पड़ेंगे, क्योंकि इधर तो कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं।
बाकी उल्लू पर बात हो रही थी तो याद आया कि “उल्लू बनाना” हाल के दौर की एक कहावत सी होती है। सही समय का जो महत्व है सो तो हइये है!