यह कैसी ज़िन्दगी जी रहे है हम ?
आज हम किस तरह की ज़िन्दगी जी रहे है? इस ज़िन्दगी में बदला ही क्या है ? वही सुबह 9 बजे से 5 बजे वाली ज़िन्दगी और उसी से जुड़ा कभी न मिटने वाली थकान और शायद उससे भी ऊपर समय का अभाव जो इस खाली ज़िन्दगी को भरते-भरते हम पूरा नहीं कर पा रहे है. यह कैसी ज़िन्दगी हो चली है अपनी ? क्या तुम बोर नहीं होते हो यार? थोड़ा आराम भी कर लिया करो और ज़रा खुद को टाइम भी दे दिया करो. बस इतना याद रखना कि यह ज़िन्दगी तो तुम्हें जीना सीखा ही देगी फिर भले ही तुम इसे जी न पाओ फिर चाहे तो जीने की कोशिश ही कर जाओ और अंत में विफल ही हो जाओ. तुम्हें यह ज़िन्दगी जीना तो सीखा ही देगी.
तुम्हें इस बात का भी अफ़सोस नहीं रहेगा कि तुमने कोई जतन या कोई कोशिश भी नहीं करी थी. कोशिश की कामयाबी में तबदीली इस बात की सूचक होगी कि सफलता कैसी होगी और किस तरह तुम्हारे गले मिलेगी. सफलता को गले से लगाना लेकिन इसे सिर पर मत चढ़ाना क्योंकि ज़िन्दगी तुम्हें फिर से जीना सीखा देगी. दिन के अंत में तुम फिर से सोचने लग जाओगे कि आखिर कैसी ज़िन्दगी जी रहे हो तुम? यह कैसी ज़िन्दगी हो चली है ? जैसा सोचा था वैसा कुछ भी न था फिर भी यह ऐसी क्यों बन गई है ?
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ज़िन्दगी जीने का ही नाम जब तक हम सब मर न जाए इसलिए ज़िन्दगी को आहिस्ता-आहिस्ता सबकुछ सहते हुए जी लो या फिर तेज़ रफ़्तार में इसे हर सुख-दुःख के साथ इसे एन्जॉय कर लो. अगर तुम यह सब नहीं कर पाए तो फिर ज़िन्दगी तुम्हें अपने अंदाज़-ए-रंग जीना सीखा देगी और फिर चाहे इसे स्वीकार कर के या फिर आत्मसात कर के जी सकोगे. ज़िन्दगी है तो जिनी तो पड़ेगी दोस्त वरना यह तुम्हें जीना सीखा देगी.
वाकई में हे ज़िन्दगी ! तुम बदल चुकी हो और तुम्हारे साथ हम सब बदल चुके हे फिर इससे हमें ख़ुशी मिली हो या फिर गम. यह ज़िन्दगी की खासियत हे कि वह खुद बदलकर हमें भी अपने साथ बदलने का मौका देती वरना बदलना तो उसे हे ही. सच में ये कैसी ज़िन्दगी जी रहे हे हम ?