दिल्ली चुनाव से महिला सुरक्षा का मुद्दा गायब क्यों है ?
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी आमने-सामने है. बेशक दोनों ने अपने-अपने मुद्दे जनता को गिनवाए है. इन मुद्दों में ख़ास क्या था ? इस बार फ्री पानी, मुफ्त बिजली बनाम राष्ट्रवाद-साम्प्रदायिकता की राजनीति ने अपने पैर पसार डाले जिससे कि दिल्ली विधानसभा में मुद्दों का घटिया स्तर देखने को मिला. यही मुद्दे पहले भी थे उनको लेकर अपशब्दों, बेबुनियाद आरोप, ज़हरीले हैशटैग कैंपेन और आरोप लगाने के लिए प्रेस कांफ्रेंस नहीं की जाती थी.
जब निर्भया की माँ कोर्ट के बाहर न्याय के लिए संघर्ष कर रही थी तो फिर उनके साथ कोई पॉलिटिकल पार्टी खड़ी क्यों नहीं हुई ? गृह मंत्री अमित शाह जब चुनावी दौरों से फुर्सत पा चुके थे तभी उन्होंने उन दरिंदे रेपिस्टों की फांसी पर रोक को चुनौती देने के लिए याचिका दायर कर दी. क्या उन्हें राजनीति करने के लिए निर्भया के घर दिखावटी सांत्वना दिखने नहीं जाना चाहिए था ?
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दिल्ली की बेटियां रात को ठीक से निकल नहीं सकती इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है ? किसी पार्टी ने इसे अहम मुद्दों में शामिल क्यों नहीं किया ? सीएम केजरीवाल के गारंटी कार्ड में इसका ज़िक्र तो देखने को भी नहीं मिला. अब आप खुद तय कर लीजिये कि किस आधार पर दिल्ली जनता 8 फरवरी को अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करेगी.
सबको अपनी ही पड़ी है लेकिन आये दिन बलात्कार, दहेज़ उत्पीड़न, घरेलु हिंसा, छेड़छाड़ जैसे काले अपराधों का सामना करती है. पुलिस उनकी फ़रियाद सुनती नहीं है और समाज उनका साथ देता नहीं है. अब तो बेटियों के लिए दिल्ली रहने लायक भी नहीं रही लेकिन पॉलिटिकल पार्टियों के लीडरों को केवल ओझी राजनीति ही करनी है और उनका वास्तव में जनता से कोई भी सरोकार नहीं है.
जब हम लोकतंत्र है तो उसकी आधी आबादी- स्त्री को हम कब उसका वाजिब हक़, न्याय, सम्मान और स्थान दे पाएंगे जिनकी वह जन्म से ही हक़दार है. बेटियां नहीं होंगी तो दिल्ली का दिल भी टूट जायेगा. इस बार महिला सुरक्षा मुद्दा का न उठना न्यू इंडिया के एक्शन प्लान पर गहरा आघात है और इससे पार पाने में हमें दुर्भाग्यवश बहुत समय लगने वाला है.