जब दिन का अंत हो तो क्या करें ?
जब आप रात को सोने के लिए अपने बिस्तर की ओर जाएं तो साफ़ तौर देख लें कि आपका हिमायती या दुश्मन दोनों में से किसने आपके साथ क्या-क्या किया है? अब दुनिया अच्छी कहाँ रही ? अब किसी माफ़ करने वाले हो ? जितने लोगों को माफ़ करना था आप कर चुके. विनम्र होकर भी यदि आप मूर्ख बनते रहे तो धूर्तों के लिए तो सब चंगा ही होता रहेगा. इतना ज़रूर है कि आप दोबारा किसी पर यकीन नहीं कर पाओगे.
यह बात भी निश्चित है कि आगे ज़िन्दगी को जीना बेहद ही कठिन हो जाए. लोगों का साथ नहीं रहेगा तो अकेला रहना ही सीखना पड़ेगा और यह बात समझ में आ गई और अकेलेपन की कला प्रकृति में खुद को ढाल लिया तो फिर किसी और इंसान की ज़िन्दगी भर ज़रुरत नहीं पड़ेगी.
"हाँ हम जैसे भी है जी लेंगे...." वाक्य कहना आप के लिए आसान हो जायेगा. यदि गलती से भी किसी भी मोड़ किसी व्यक्ति से टकराना मुनासिब हो भी गया तो उसे माफ़ करने की क्या ज़रुरत है ? उसने आपके विश्वास को तोड़ा, उसने आपसे मुँह मोड़ा है और उसी ने आपका साथ छोड़ा है. मत माफ़ कीजिये ऐसे लोगों को कि जब आपके पैर बिस्तर की ओर बढ़ने लगे. पूरे गंभीरता भरे क्रोध के साथ आप उस व्यक्ति के खिलाफ नफ़रतें बढ़ाइए क्योंकि अब यही आपके रिश्ते का दायरा है.
आपको नींद आ जाएगी गुस्से के साथ भी और अगला दिन उन्हें अपशब्द कहते ही शुरू करें. दिन का अंत जो आने वाला रहे तो सोचिये कि कहीं किसी अपने ने भी तो धोखा नहीं दे डाला आपको. आप ज़रा ध्यान में रखिये इस बात को कि वह शख्स आपके कितना ही करीब क्यों न हो, उसे माफ़ करना आपके लिए ही घातक होगा क्योंकि वजह तो साफ़ है कि आप मूर्ख बनेगे और वह आपको फिर से दर्द, दुःख और धोखा देगा.
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तो आपके उसके कर्ज़ को अपने तक सीमित क्यों रखें है? जब प्यार दिया तो बदले में वापस क्या मिला ? तो दर्द रख के क्या करोगे मितवा ? अपने दर्द को याद मत करो लेकिन उसे भीतर राख की भांति रखे भी रहो कि वह शख्स जब सामने आये तो तुम उसको अच्छे से उसका बकाया व्यवहार दे सको. कोई भी ज़रुरत नहीं है सुबह से लेकर रात ऐसे व्यक्तियों के बारे में सोचने का जो आपके लिए अपनी सुविधा के अनुसार ही जिए, करे और आपको पूछे. जब दिन का दिन नज़दीक हो तो तय कर लें कि कौन अपना है और कौन पराया है और इतना समझ एवं व्यवहारिकता अपने अंदर पाल लीजिये की ज़िन्दगी खुद के पैरों पर जी सकें.
बुरे बनकर जी लिए अच्छा लगेगा और सफलता कदम चूमेगी. सवाल खटक गया न मन में कि "क्या -क्यों?" तो ज़रा याद कर लीजिये कि अच्छा रहकर आपको आखिर मिला ही क्या आज तक ?