By
Sanat Shukla
तृष्णा और सीमा का उलंघन!!
सीमा (जिसे मर्यादा भी कह सकते है) एक ऐसा वर्ड है जिसका जगह-जगह पर अलग-अलग अर्थ निकलते है। और इसकी उत्पत्ति तृष्णा से होती है, तृष्णा जिसका साधारण अर्थ लोभ या चाहत कुछ अधिक पाने की। कह सकते है, लोभ जो, अत्यधिक सुख प्राप्ति की ललक होती है।
इनसभी को एक लाइन में कहे तो कह सकते है कि, तृष्णा (लोभ) की अधिकता से सीमा (मर्यादा को) खंडित होने की संभावना बनी रहती है।
सीमा के कई रूप होते है, अगर देश की बात हो तो LOC बन जाता है, और इज्जत की बात हो तो मर्यादा बन जाती है। दोना फसाद के जड़ है, LOC देश मे फसाद करवाता है, तो मर्यादा घर को , समाज को, रिश्तों को मट्टी में मिला देता है। देश की सीमा के उदाहरण आपको पता है, हम सभी रोज देखते है हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच की सीमा (मर्यादा) को LOC से जानते है जो एक विवाद है। पर आज जिस सीमा की बात हम कर रहे है उसका सीधा अर्थ मर्यादा से है और इस मर्यादा का एक अच्छा उदाहरण रामायण में है, जो इसप्रकार से है।
पंचवटी में सीता माता को मृग की तृष्णा (लोभ) पैदा हुई, उनकी स्वर्ण-हिरण को, पाने की लोभ इतना प्रबलित हुई कि उन्होंने भी सीमा (मर्यादा का) उलंघन कर दिया था।
क्या सीता माता को नही पता था कि हिरन स्वर्ण की नही होती? क्या प्रभु राम को नही पता था कि हिरण स्वर्ण की नही होती? पता था, दोनो को पता था। पर भगवान का जन्म होता ही है समाज को संदेश देने के लिए, पाठ पढ़ाने के लिए, और भगवान हम तुच्छय मनुष्यो को सबक की पाठ पढ़ाने के लिए इस धरती पर नाट्य रूप पस्तुत करते है, जिनमे ओ खुद उस दुख दर्द को भोगते है।
हम मनुष्यो को रामायण-महाभारत के माध्यम से बहुत कुछ शिक्षा दिया गया है, सबक दिया गया है, उसी का एक अंश है पंचवटी में माँ सीता की मर्यादा का उलंघन की नाटकीय घटना।
जब माँ सीता को हिरन की तृष्णा (लोभ) पैदा हुई, ओ लोभ जो...
धरती पर तत्क्षण समय मे हमारे लिए प्राप्त करना सम्भव नही होता फिर भी हम उस सुख की प्राप्ति की इक्षा से उत्पन्न लोभ को कंट्रोल नही कर पाते.....तब हम अपनी सीमा (मर्यादा) का उलंघन कर देते है।
ठीक यही बात माँ सीता ने अपने नाटक में प्रस्तुत किया है, और आज ठीक यही बात साक्षी मिश्रा ने अपने जीवन मे उतार लिया है। दोनो में बहुत समानता है, पर माँ सीता मनुष्य रूप की नाटक में थी और ये असल जीवन मे है।
माँ सीता जानती थी कि ये हिरण हमारे लिए सम्भव नही है, फिर भी जिद्द की, और प्रभु श्री राम इसके पीछे गए। चुकी उन्हें संदेश देना था मर्यादा का, पर उस संदेश को साक्षी जैसी लडकिया अपने मे समा नही सकी।
यंहा ध्यान दिया जाय कि राम जी, जानते हुवे की ये छल है, अपनी पत्नी और भाई की सुरक्षा की मर्यादा को मनुष्य के नाटक में भूल गए और अपनी दाइत्व लक्ष्मण जी को दिए कि मेरे अनुपस्थिति में सीता की रक्षा करना।
इधर दुष्ट मारीच की छल के रूप में राम जी की आवाज माँ सीता द्वारा सुने जाने के उपरांत, माँ सीता ने लक्ष्मण को जिद्द करके वन भेजी।
यंहा ध्यान देने लायक बात ये है कि, लक्ष्मण जी ने अपनी सीमा (मर्यादा) जो राम जी द्वारा दिया गया आदेश को भूल कर माँ सीता को सीमा (मर्यादा) में रहने को बोल कर सीमा का निर्धारण (लक्ष्मण रेखा घिच) कर चले गए। राम जी ने भी सिमा का उलंघन किया, और श्री लक्ष्मण जी ने भी, अब बारी थी माँ सीता की सीमा उलंघन की पार्ट की।
मयाबी रावण के आने के बाद, सीता माता को मर्यादा (लक्ष्मण रेखा) की रेखा में देखकर, रावण ने माँ सीता को मर्यादा की रेखा से बाहर करने के लिए कई चाल चले, (ठीक ऐसे है साक्षी की तथाकथित पति ने चाल चला होगा) पर माँ सीता बाहर नही आई।
तब उसने श्राप का ढाल बनाकर पति और देवर दोनो को खतरे में बताया तो माँ सीता इतनी बिचलित हुई कि लक्ष्मण द्वारा बनाया गया मर्यादा की रेखा को पार कर गई। जैसे साक्षी ने अपनी खानदान की मर्यादा की रेखा पार की।
उसके बाद क्या हुवा? आप सब जनते है। इस घटना में साफ दिखता है कि तीनों ने अपनी-अपनी सीमा का उलंघन किया। रावण जैसा प्रतापी भी माँ सीता को उनकी मर्यादा की रेखा (लक्ष्मण रेखा) के अंदर कुछ बिगाड़ नही पाया। माँ सीता को मर्यादा की रेखा पार करवाने के लिए कितना पापड़ बेले, तब जाकर रावण उन्हें हरण कर सका। यंहा भी रावण हाथ नही लगाया था। क्योकि जबतक आप अपनी मर्यादा की सीमा नही पार करते आपको कोई कुछ नही बिगाड़ सकता।
अशोक बाटिका में भी माँ सीता की मर्यादा की रेखा एक दूब का घास था। और उस मर्यादा की रेखा को रावण कभी पार नही कर सका। माता को छू नही सका, पर साक्षी ने कितनी मर्यादा बना कर रखी है ये तो वही जानती है।
आजकल की लड़कियों का न कोई मर्यादा रह गया है न ही वे किसी मर्यादा की सीमा को मानते है। और जब दारुण दुख झेलनी पड़ती है तो पछताते है। जैसे अभी साक्षी माफी मांग रही है अपने माँ बाप से।

हमारे धर्म गर्न्थो में अनेको उदाहरण है जो हमारे जीवन मे महत्वपूर्ण स्थान रखते है। पर आज कल की युवक-युतियां, पश्चमी सभ्यता, फिल्मी दुनिया की फरेबी जाल में ऐसे जकड़े है की गलत-सही, मान-मर्यादा, घर-समाज, माँ-बाप सभी की सीमा से बाहर हो गए है, आज की बच्चियों की तृष्णा इतनी बढ़ गई है कि सीमा का उलंघन हर दिन हर पल करते है। जिसका ताज़ा उदाहरण अभी चल रहा है।
जय भारत।। जय सनातन।।