A Story on Reservation
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23-May-2019, Updated on 5/23/2019 6:32:08 AM

A Story on Reservation

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जिन्दगी का पहला तमंचा और आरक्षण
(कहानी)

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A Story on Reservation

कई वर्ष पहले की बात है। हम कुल तीन दोस्त, अपने कॉलेज से छुट्टियों में घर जा रहे थे। लखनऊ स्टेशन से ट्रेन बदलनी थी, सो वहीं प्लैटफॉर्म पर बै े गप्प मार रहे थे।

मेरी नजर थोड़ी तेज है बचपन से ही, तो मैंने ताड़ लिया कि एक हमलोगों से उम्र में बड़ा लड़का, हम लोगों को अजीब सी नजरों से देख रहा था। उसकी नजरों में कुछ ऐसा था कि मेरी नजरें बार बार उधर जाने लगीं। मैंने अपने दोस्तों से बताया, फिर भी वो लड़का सूनी सी निगाहों से हमें देख रहा था।

फिर जब हम सब उसको घूरने लगे तो, वो उ कर आया, और हमारे ही बेंच पर बै गया। पास से देखने पर मुझे कुछ और भी नजर आया। उसकी निगाहें सिर्फ सूनी ही नहीं थीं, बल्कि उनमें एक अलग तरह का ंडापन, एक अलग ही स्थिरता सी थी। अजीब था वो। अगर उसकी आँखों को छोड़ दिया जाय, तो शक्ल सूरत से वो भी एक पढ़ाकू लड़का ही लग रहा था।

फिर वो खुद ही बोल पड़ा,.. "तुम लोग स्टूडेंट हो? मुझे स्टूडेंट बहुत अच्छे लगते हैं।"

मैंने जवाब में अपने और अपने दोस्तों के बारे में बताया, फिर मैंने उससे पूछा,.. "आप कौन हैं, आप कहां पढ़ते हैं?"

उसने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा,... "मेरी पढ़ाई छूट गई, अब मैं कॉन्ट्रैक्ट किलर (भाड़े का हत्यारा) हूँ।"

पहले तो हम तीनों सिहर उ े उसकी आवाज सुनकर,.. फिर मैं हँस के कहा,... "क्या फालतू का मजाक है ये?"

इतना सुनते ही उसने अपनी पैंट के पीछे, शर्ट के नीचे खोंस रखा तमंचा उ ा कर अपनी गोद में, हम लोगों के सामने रख लिया। मारे डर के मेरी घिग्घी बँध गई, और मैं हड़बड़ा के खड़ा होना चाहा, तो उसने क ोरता से मेरा हाथ पकड़ लिया, और फिर वो "रिवाल्वर"(हाँ, तमंचा नहीं था),,

अपनी पॉकेट में छुपा लिया, और बहुत शांति से कहा,.. "चुपचाप बै े रहो, मुझे कोई गलत कदम उ ाने के लिए मजबूर मत करो।"

हम तीनों का जिस्म धड़ाधड़ पसीना फेंकने लगा, और वो अपनी कहानी सुनाने लगा,.... "मैं भी गोरखपुर से हूँ,.. नाम है फलाने पांडे। पढ़ाई में बहुत होशियार था, दसवीं के रिज़ल्ट में कुछ ही नम्बरों से मेरिट में आने से रह गया। पापा एक सरकारी बैंक में सीनियर क्लर्क थे, और थोड़ा ज्यादा धर्म वर्म मानते थे, और सीधे, दयालु भी बहुत थे।

तो "अपने साहब" जो कि एक तथाकथित 'दलित' था, और पापा का जूनियर था, वो आरक्षण की वजह से ही नौकरी पाया था, और आरक्षण से ही वो पापा का सीनियर भी बन गया। पापा का काम हमेशा वक़्त से पूरा रहता था, लेकिन वो पापा को हर वक़्त जलील करने का मौका ढूँढता रहता था। एक बार अपने दयालुता और बेवकूफी की वजह से, एक ग्वाले को अपनी जमानत पर लोन दिलवा दिए। वो ग्वाला उस लोन को पचा गया, और अपने को दिवालिया घोषित कर लिया, उसके राजनीतिक रिश्ते भी बहुत थे, सो रिकवरी संभव नहीं थी।

अब इसी को लेकर उस दलित साहब ने, गबन का इल्जाम लगा कर केस कर दिया पापा पर। पापा जमानती थे उस लोन पर, तो केस हारने ही वाले थे। एक तो नौकरी जाने का तनाव, ऊपर से दिन भर साहब की गालियाँ और सारे जमाने के ताने,... बर्दाश्त नहीं कर पाए,.. और नर्वस ब्रेकडाउन का शिकार होकर, एक दिन हम सबको इस भरी दुनिया में अकेला छोड़ कर चल दिए। आकस्मिक मृत्यु और "साहब की नीयत" की वजह से, पापा के बाद उनकी नौकरी मुझे या मेरी माँ को मिलनी चाहिए थी, वो फिर से एक आरक्षण वाले को मिल गई, ये कह कर कि अभी बहुत लंबी लाइन है। वो साहब ख़ुद हमारे घर आया था, और जो साला पापा के रहते, हमारे घर आकर मां के पैर "गुरुआइन" बोलकर छूता था, वो माँ से बोला कि,.. "तुम्हें वो नौकरी मिल सकती है, अगर अपनी बेटी (मेरी 15 साल की बहन) को एक रात मेरे पास भेजो।" पानी के लिए जो प्लेट लाई थी माँ, उसी को उ ा कर उसके मुंह पर दे दनादन मारने लगी माँ। लेकिन वो पुरुष था, मम्मी को धक्का दे कर चला गया। जाते जाते कह गया कि,.. "तुम्हारे परिवार को अब वो नौकरी कभी नहीं मिलेगी।"

मैं घर से बाहर था उस वक़्त, नहीं तो उसके कत्ल के जुर्म में जेल में होता आज। दसवीं पास था, तो कई एक्जाम में ट्राइ मारा,.. लेकिन आरक्षण की वजह से कहीं नौकरी नहीं मिली। फिर एक बार हारकर, उस अधिकारी से मिलने गया कि,.. पापा की नौकरी मुझे दिलवा दो,... । लेकिन फिर से उसने मेरी बहन को भेजने की बात की। मेरा दिमाग खराब हो गया, और मैंने हाँ कर दिया। मैंने कहा,.. "लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि मेरी बहन के बारे में कोई और ना जान पाए।" उसने हाँ बोला।

मुझे मालूम था कि,... इस काम को वो किसी से नहीं बताएगा। इसलिए मैंने अपने पूरे परिवार का फ़िल्म देखने का प्लान बनाया,.. और फ़िल्म शुरु होते ही टॉयलेट के नाम पर उ कर उससे मिलने गया, बुर्के में। मैंने उसके शरीर के सौ से ज्यादा टुकड़े किए, और फिर आखिर में थिएटर लौट आया।

फिर मेरा मन अपराध में लग गया। लेकिन आज भी मैं केस जाति देख कर लेता हूँ। "

मेरे मुँह से फँसा फँसा सा स्वर निकला,... "आपको पकड़े जाने का डर नहीं? मेरे सामने आपने ऐसे रिवाल्वर दिखा दिया, अभी RPF को बोल दूँ तो??"

वो बोला,... "अगर तुम्हारे में दम है तो, किसी भी पुलिस वाले को बोल के दिखा दो,.. और अगर सामने वाले मे दम है तो मुझे गिरफ्तार कर के दिखा दे!

भाई,.... मेरे कारनामे की वजह से,... मुझे एक राजनीतिक पार्टी ने खरीद लिया है। अब मैं उनके लिए मर्डर करता हूं, अभी लखनऊ में भी इसीलिए आया था, लेकिन टार्गेट एक डॉक्टर था, और वो बच गया, इसलिए वापस जा रहा हूँ।

उसकी आखिरी हँसी बहुत भयानक थी,.. बोला,.. "तुम्हें क्या लगता है कि, ये आरक्षण वाले चुतिए मुझे पकड़ लेंगे? प्रदीप भाई, इनमें वो औकात कभी नहीं आ सकती है, अगर कोई ब्राह्मण/सवर्ण इनपे हाथ ना रखे। जैसे भीमराव को मदद अंबेडकर ने किया था।

एक आरक्षण वाले चुतिए में इतना दिमाग कैसे हो सकता है कि वो हम जैसों को पकड़ सके? मुझे पकड़ने वाला कोई सवर्ण जाति का ही होगा। "

"अरे शुकुल, जब तक ये आरक्षण से जीतने की कोशिश करेंगे, हमेशा मार खाएंगे। भिखारी को साला कितना भी धन दे दो, कुछ साल बाद वो फिर भिखारी ही मिलेगा।"

और तभी एक RPF का बन्दा दिखा,... अभी हम कुछ कहने की सोचते,.. उससे पहले ये "पांडे जी" खड़े होकर बोले,... "का हो दीनानाथ? सब कुशल मंगल?"

दीनानाथ यादव जी की हीहिहिही देख कर, हमने पूरी कथा की सच्चाई समझ लिया।

शुक्ला जी !!!

"जय हिंद..!!"

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